देशभक्ति, बच्चों में । आज के दौर में देशभक्ति आप सभी ने पिछले लेख में पढा (पद़ने के लिए क्लिक करें ) । तो हमारा देश के प्रति क्या कर्तव्य बनता है कि हम उसकी प्रगति में अपना सहयोग दें ? संभावित उत्तरों की खोज के लिए आगे पढ़ते हैं –
बच्चों के दैनिक जीवन में देशभक्ति निर्माण –
सभी जिम्मेदार नागरिक खुद व खुद के बच्चों में देशभक्ति की भावना मजबूत करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं।खुद के व बच्चों के दैनिक जीवन में इन आदतों का निर्माण कर हम बच्चे के चरित्र को उत्तम व प्रभावशाली बना सकते हैं।
देश के प्रति कर्तव्यों का निर्वहन –
सर्वप्रथम देशभक्ति के लिए जरूरी है कि हम देश के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें। यदि हम कर्तव्यों को जानते व पहचानते हैं, तो अवश्य ही हम उन्हें अमल में लाने की कोशिश करेंगे। इसी उद्देश्य से NCERT ने भी अपनी किताबों के मुखपृष्ठ पर संविधान के मौलिक कर्तव्य व अधिकारों Fundamental Rights and Dutiesको जगह दी है।
सहयोग की भावना –

यह एक सामाजिक भावना है। अतः समाज के उद्देश्यों को उन्हें बताएं। उन्हें बताएं कि एकता में शक्ति होती है। अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। जिस समाज में आप रहते हैं उसकी अच्छाइयां उन्हें बताएं। सहयोग करने के लिए प्रोत्साहित करें । मदद करना, लगाव होना, सम्मान देना यह देश भक्ति के प्रथम पायदान हैं। उन्हें मदद करना, व मदद लेना दोनों सिखाएं।
आजादी की कीमत उन्हें समझाएं–
उन्हें देश भक्ति की कहानियां सुनाएं। यदि संभव हो तो बच्चे को किसी भी देशभक्ति घटना या देशभक्त व्यक्ति की कहानी याद करके ही सुनाएं। इससे बच्चा उस घटना अथवा व्यक्ति को अधिक महत्वपूर्ण समझता है । बच्चा उसकी महत्व को याद रखने की कोशिश करेगा। और यदि आप उसे पढ़कर या दिखाकर उसे बताते हैं तो उसे पता चल जाता है कि यह ज्ञान केवल मेरे लिए जरूरी है आप के लिए नहीं ।
प्रगति को देश से जुड़े –
बच्चे की उपलब्धियों को या कमियों को देश व समाज से जोड़ें ना कि पड़ोसियों से। संभव हो तो कहें की आप एक दिन जरूर देश का नाम रोशन करोगे। इससे उसके मन में देश के प्रति लगाव होगा। और वह संपूर्णवादी मन से अपने देश के प्रति जिम्मेदार नागरिक बनेगा।
दूसरों को स्वीकार करें-
खुद के परिवार को या टीम को भारत या इंडिया जरूर माने । लेकिन पड़ोसी या विपक्षी टीम को पाकिस्तान कहकर सीमित ना कर लें । क्योंकि हमें खुद को आगे ले जाना है, ना कि दूसरे को पीछे धकेलना है। इन बातों का ध्यान विशेष रुप से रखें की बच्चा अपनी विशेषताओं को तो पहचाने हैं, लेकिन दूसरे की विशेषताओं को गलत साबित ना करें । यदि हम हर बात पर पड़ोसियों में कमी निकालने के आदी हो गए हैं तो जाहिर सी बात है की हमारे गीले कपड़ों के छींटे भी शोले बनकर उनके यहाँ गिर सकते हैं ।
सुरक्षा की जिम्मेदारी-
सेना Indian Army में भर्ती होकर देश की सुरक्षा की जिम्मेदारी केवल गरीब परिवारों की ही नहीं और ना कुछ गिने चुने सैनिकों के परिवारों ने ले रखी है। सभी लोग अपने परिवारों से सेना में सेवाएं देने के लिए अपने बच्चों को प्रेरित करना चाहिए।
प्रोत्साहन –
अपने बच्चों व प्रिय जनों को जिस प्रकार से प्रोत्साहित करते हैं आवश्यकता है उसी प्रकार से हम पड़ोस व समाज के बच्चों को भी प्रोत्साहित करें। उनका मनोबल भी ऊंचा होगा और वह और बेहतर करने के लिए प्रेरित होंगे।
स्वच्छता –
परिवार व समाज देश के महत्वपूर्ण अंग है। यदि यह प्रदूषित रहेंगे तो हमारा देश संक्रमित व दूषित हो जाएगा। अतः जरूरी है कि हम अपने घरों में ही नहीं बल्कि गलियों में भी साफ सफाई रखें । आजकल जो स्वच्छ भारत की संकल्पना माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने चलाई है, उस पर बढ़ चढ़ कर हिस्सा लें ।
विभिन्नताओं को जानें व स्वीकार करें –
भारत भौगोलिक व सामाजिक दृष्टि से बहुत ही विभिन्नताओं वाला देश है । जिसमें विभिन्न धर्म, जाति, मान्यताओं, व रीति-रिवाजों को मानने वाले लोग रहते हैं। इन्हें जानें व स्वीकार करें। क्योंकि भारत का संविधान प्रत्येक भारतीय को समानता का अधिकार देता है। यही लोकतंत्र की ताकत है ।
हिंदी भाषा –
‘ एक राष्ट्र एक भाषा’ की संकल्पना राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। हिंदी हमारी मातृभाषा है। यह हमें एक सूत्र में पिरोती है। अतः अधिक से अधिक बच्चे में हिंदी भाषा का विकास करें। उसे भी हिंदी भाषा के मूल्यों को जानने के लिए प्रेरित करें। हिंदी पर गर्व करना अपने देश पर गर्व करना जैसा है।
सामुदायिक संस्थाओं के रक्षा-
सरकार द्वारा स्थापित संस्था व उपक्रमों की रक्षा करना देश रक्षा के बराबर ही है। इन संस्थानों में आंगनबाड़ी केंद्र, स्वास्थ्य केंद्र, विद्यालय, पंचायत भवन, मिलन केंद्र, पुस्तकालय, सड़क, पेयजल, बिजली केंद्र आदि हो सकते हैं। भले ही इनकी सुरक्षा व जिम्मेदारी के लिए सरकार द्वारा नियुक्त लोग हैं लेकिन जरूरी है कि हम सब मिलकर अपने इन संस्थाओं को सुरक्षित रखने में मदद कर सकते हैं। वह इनके द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं को समाज में जरूरतमंद लोगों तक पहुँचा सकते हैं ।
अधिकारों के लिए संघर्ष-
बच्चों को प्राप्त बाल अधिकार या सामाजिक अधिकारों को प्राप्त करने के लिए संघर्ष करना सिखाना चाहिए अन्याय व जुल्म सहना भी एक प्रकार की गुलामी ही है जिसे हमने तब भी तोड़ा था और अब भी तोड़ेंगे।
स्वाधीनता सेनानी,राष्ट्र चेतना के महान कवि, पद्मभूषण मैथिलीशरण गुप्त जी पंक्तियां सदैव हमें प्रेरित करती रहेंगी –
“जो भरा नहीं है भावों से, जिसमें बहती रसधार नहीं।
वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।”
देश भक्ति की विचारधारा भी शिक्षा की ही तरह है। जो कि सतत एवं जीवंत पर्यंत चलनी चाहिए I केवल एक दिन या एक सप्ताह या कोई पखवाड़ा बच्चों में इस विचारधारा को मजबूत नहीं बना सकता। तो जरूरत है हम सब मिलकर अपने इन प्रयासों को सतत रूप से अपने व्यवहार में डालें और बच्चों को देशभक्त बनाएं।
जय हिंद अरविन्द कुमार